जब किसी ने श्री प्रेमानंद जी महाराज से यह पूछा कि “मैं बहुत दुखी हूँ, कोई उपाय बताइए,” तो महाराज ने इस पर अपने अनमोल वचन दिए। उन्होंने इस सवाल के जवाब में बताया कि असल में दुख की कोई वजह नहीं होती, बल्कि यह हमारी मानसिक स्थिति और सोच का परिणाम होता है। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, हम भीतर ही सुख का समुद्र रखते हैं, जिसे हम पहचान नहीं पाते।
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, “पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन-सुन आए हंसी।” इसका अर्थ यह है कि जैसे मछली पानी में तैरते हुए कभी नहीं सोचती कि उसे पानी की आवश्यकता है, वैसे ही हम जब तक भीतर के सुख और शांति को पहचान नहीं पाते, तब तक बाहर की चीज़ों में उसे ढूंढते रहते हैं। असल सुख हमारे भीतर ही है, और हम केवल उसे महसूस करने में असमर्थ होते हैं।
महाराज ने यह भी बताया कि हमें बाहरी दुनिया में सुख की तलाश करने की बजाय, अपने हृदय में सच्चे सुख और शांति को ढूंढने की आवश्यकता है। “तुम्हें राम नाम प्रिय है, कृष्णा नाम प्रिय है, हरि नाम प्रिय है, राधा नाम प्रिय है। जिसे जो नाम प्रिय हो, उसका जाप करो, और देखो तुम्हारे हृदय में कितना माल भर जाएगा कि तुम्हें आंखें खोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
यह संदेश हमें यह सिखाता है कि भक्ति और साधना के माध्यम से हम अपने भीतर की शांति और आनंद को अनुभव कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम राम, कृष्ण, हरि और राधा के नामों का जाप करते हैं, हमारा हृदय शुद्ध होता जाता है और हम अपने जीवन में संतोष और सुख का अनुभव करने लगते हैं। जब हम अपने भीतर के सुख को पहचान लेते हैं, तो हमें किसी बाहरी कारण की तलाश नहीं रहती।
निष्कर्ष: प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, दुख का कोई बाहरी कारण नहीं है। अगर हम अपने भीतर की शांति और सुख को पहचान लें और भक्ति के माध्यम से अपना मन शुद्ध करें, तो हर दुख का समाधान संभव है। असली सुख हमारे भीतर है, और हमें इसे खोजने के लिए अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है।