परमहंस योगानंद की जीवनी | Paramahansa Yogananda Biography in Hindi

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परमहंस योगानंद (जन्म: 5 जनवरी 1893 – मृत्यु: 7 मार्च 1952) एक महान भारतीय योगी, संत और गुरु थे, जिन्होंने पश्चिमी दुनिया में ध्यान और क्रिया योग के महत्व को बताया। उनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर में हुआ था, और उनका वास्तविक नाम मुखंड लाल घोष था। वे भारतीय योग परंपरा के महान गुरु स्वामी श्री यूकेतश्वर के शिष्य थे और जीवनभर आत्म-ज्ञान के प्रचारक रहे।

बचपन और गुरु की खोज

परमहंस योगानंद का जन्म एक सम्पन्न और धार्मिक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता स्वामी लाहिरी महासया के शिष्य थे, जो क्रिया योग के पुनरुद्धारक माने जाते हैं। योगानंद ने बचपन में ही ईश्वर के प्रति गहरी आस्था विकसित कर ली थी। उन्होंने कई संतों और महात्माओं से शिक्षा लेने का प्रयास किया, लेकिन 1910 में उन्हें अपनी आत्मा के सच्चे गुरु स्वामी श्री यूकेतश्वर मिले, जिन्होंने उन्हें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। स्वामी श्री यूकेतश्वर ने योगानंद को यह बताया कि उन्हें क्रिया योग को पश्चिमी देशों में फैलाने का कार्य सौंपा गया है।

Kriya Yoga meditation practice, a technique taught by Paramahansa Yogananda for spiritual growth and self-realization

शिक्षा और दीक्षा

योगानंद ने 1915 में कैलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1917 में धनिका (रांची) में एक विद्यालय की स्थापना की, जिसमें योग और आधुनिक शिक्षा का समागम था। इस विद्यालय को बाद में योगोदा सत्संग सोसाइटी के नाम से जाना गया, जो आज भी भारत और दुनिया भर में योग के शिक्षण का प्रमुख केंद्र है।

पश्चिम में योग का प्रचार

1920 में योगानंद को अमेरिकी यूनिटेरियन एसोसिएशन द्वारा भारत का प्रतिनिधि बनकर बॉस्टन जाने का निमंत्रण मिला। वहां उन्होंने अपना पहला व्याख्यान दिया और फिर अमेरिका में क्रिया योग के अभ्यास को बढ़ावा देना शुरू किया। उन्होंने सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप (SRF) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य योग और ध्यान की भारतीय विधाओं को पश्चिमी दुनिया में फैलाना था। वे पहले भारतीय गुरु थे जिन्होंने पश्चिम में योग की शिक्षा दी और लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया।

प्रसिद्धि और योगदान

परमहंस योगानंद ने “आत्मकथा योगी” (Autobiography of a Yogi) नामक अपनी जीवनी 1946 में प्रकाशित की, जो आज भी विश्वभर में एक प्रसिद्ध और पठित धार्मिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक को 4 मिलियन से अधिक प्रतियाँ बेची जा चुकी हैं, और यह पुस्तक उन लाखों लोगों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी, जो आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्ग तलाश रहे थे।

योगानंद के योगदान के कारण ही उन्हें “पश्चिम में योग के पिता” के रूप में सम्मानित किया गया। उन्होंने न केवल ध्यान और योग की भारतीय विधाओं को पश्चिमी दुनिया में फैलाया, बल्कि उन्होंने दोनों संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया। वे 1935 में भारत लौटे और वहां अपने गुरु से उच्चतम आध्यात्मिक स्तर पर दीक्षा प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने अपना नाम परमहंस योगानंद रखा।

परमहंस योगानंद का संदेश

परमहंस योगानंद का मुख्य संदेश था कि “आत्म-ज्ञान ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है।” उनका मानना था कि हर व्यक्ति के अंदर दिव्यता है और हमें ध्यान के माध्यम से उस दिव्यता को जागृत करना चाहिए। उन्होंने बताया कि क्रिया योग वह सबसे तेज़ और प्रभावी साधना है, जो व्यक्ति को आत्मा के साथ एकाकार करने में मदद करती है।

योगानंद के अनुसार, “आत्म-साक्षात्कार” का अर्थ यह है कि हम अपने शरीर, मन और आत्मा के हर हिस्से में यह अनुभव करें कि ईश्वर की उपस्थिति हमारे भीतर है, और हमें इसे प्राप्त करने के लिए कुछ भी बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं है।

मृत्यु और आध्यात्मिक धरोहर

7 मार्च 1952 को परमहंस योगानंद ने शरीर त्याग किया, लेकिन उनका संदेश और शिक्षा आज भी जीवित हैं। उन्होंने अपनी संस्था सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप के माध्यम से लाखों लोगों को योग, ध्यान और आत्मज्ञान का मार्ग बताया। उनकी शिक्षाएँ आज भी भारत और पश्चिम में हजारों केन्द्रों के माध्यम से फैल रही हैं।

उनकी शिक्षाओं के कारण परमहंस योगानंद को पश्चिमी दुनिया में एक महान योग गुरु और संत के रूप में पहचाना जाता है। उनकी जीवन यात्रा और उपदेश हमेशा के लिए मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर बने रहेंगे।

परमहंस योगानंद से संबंधित 5 सामान्य प्रश्न

1. परमहंस योगानंद कौन थे?

परमहंस योगानंद एक महान भारतीय योगी, गुरु और ध्यान के प्रवर्तक थे जिन्होंने क्रिया योग को पश्चिमी दुनिया में फैलाया और आत्मज्ञान के बारे में अपनी शिक्षाएँ दीं।

2. परमहंस योगानंद का प्रसिद्ध पुस्तक क्या है?

परमहंस योगानंद की प्रसिद्ध पुस्तक “आत्मकथा योगी” (Autobiography of a Yogi) है, जिसे 1946 में प्रकाशित किया गया था। यह पुस्तक योग और ध्यान के बारे में उनकी जीवन यात्रा का एक अमूल्य दस्तावेज़ है।

3. परमहंस योगानंद ने क्रिया योग को कैसे प्रचारित किया?

परमहंस योगानंद ने 1920 में अमेरिका जाकर क्रिया योग की शिक्षाएँ दीं। उन्होंने अपनी संस्था **Self-Realization Fellowship** की स्थापना की, जिससे उन्होंने क्रिया योग और ध्यान का प्रचार किया।

4. परमहंस योगानंद के गुरु कौन थे?

परमहंस योगानंद के गुरु **स्वामी श्री यूकेतश्वर** थे, जो एक महान योगी और क्रिया योग के जानकार थे। स्वामी यूकेतश्वर ने ही योगानंद को पश्चिम में योग का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया।

5. परमहंस योगानंद का जीवन उद्देश्य क्या था?

परमहंस योगानंद का जीवन उद्देश्य था, **”आत्म-ज्ञान के माध्यम से ईश्वर के साथ मिलन”**। उनका विश्वास था कि ध्यान और क्रिया योग के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिव्यता को पहचान सकता है।

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