परम पूज्य श्री स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी महाराज की जीवनी

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परम पूज्य श्री स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी महाराज का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य असाधारण था। बचपन से ही वे एक गहरे आत्मिक खोज में थे और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को जानने की चाहत रखते थे। इसी खोज ने उन्हें भारत के विभिन्न स्थानों पर घूमने और कई महात्माओं, साधु-संतों से मिलने के लिए प्रेरित किया। चार वर्षों तक उन्होंने कठोर तप और साधना की और अपनी आत्मा को खोजने के लिए अनेक आश्रमों का दौरा किया।

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1956 में उन्होंने कैलाश-यात्रा का संकल्प लिया, जो उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने परमात्मा के अद्वितीय आशीर्वाद से ‘आत्मलिंग’ के दर्शन किए। इस दिव्य अनुभव ने स्वामीजी के जीवन को एक नई दिशा दी और उन्होंने संन्यास की वास्तविकता और उसकी गहरी शक्ति को समझा। इस अनुभव के बाद, स्वामीजी ने केवल मौन में रहने और आत्मचिंतन करने का संकल्प लिया।

श्री स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी की खोज ने उन्हें श्री स्वामी नरसिंह गिरि जी महाराज से मिलवाया, जो उनके आध्यात्मिक गुरु बने। श्री स्वामी नरसिंह गिरि जी ने उन्हें आदि शंकराचार्य के “परमहंसा संन्यास आदेश” में दीक्षा दी और वेदांत के ज्ञान की शिक्षा दी। इसके बाद, स्वामीजी ने अपने गुरु के निर्देशन में गहन साधना की और आत्मज्ञान प्राप्त किया।

1960 में, जब स्वामीजी माउंट आबू पहुंचे, तो उन्हें वहाँ की शांति, सन्नाटा और दिव्य ऊर्जा ने एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव से अभिभूत कर दिया। उन्होंने महसूस किया कि यही वह स्थान है जहाँ उनकी साधना और मिशन पूरा होगा। माउंट आबू की चुप्प और प्राकृतिक सुंदरता में वे दिव्य मातर शक्ति, माता अर्जुड़ा देवी की उपस्थिति महसूस करने लगे। इसके बाद, उन्होंने इस स्थान पर कठिन साधना शुरू की और अपने आत्मिक ज्ञान में गहरी पैठ बनाई। माउंट आबू में रहते हुए स्वामीजी ने कई गुफाओं और मठों में ध्यान किया, जहां उन्होंने अपनी साधना को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया।

उनकी तपस्या और साधना ने उन्हें न केवल आत्मज्ञान, बल्कि समृद्ध शांति और आंतरिक सुख भी प्रदान किया। 1971 में, जब उनकी साधना के केंद्र के रूप में श्री सोमनाथ मंदिर के पास एक आश्रम स्थापित हुआ, तो यह एक ऐतिहासिक क्षण था। इस आश्रम का नाम “सम्वित साधनायना” रखा गया, जो आज भी आत्मज्ञान के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करता है। यहाँ, स्वामीजी ने न केवल वेदांत और साधना की शिक्षा दी, बल्कि अनेक भक्तों को आत्मिक शांति और ज्ञान की ओर मार्गदर्शन भी किया।

स्वामीजी की शिक्षाएँ और वचन हमेशा साधकों को सरल, परंतु गहरे सत्य की ओर मार्गदर्शन करते थे। उनकी उपस्थिति में, हर शिष्य को ऐसा अनुभव होता था कि वे एक दिव्य गुरु से आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। स्वामीजी ने हमेशा अपने अनुयायियों को प्रेम, शांति और आत्म-ज्ञान की महत्वता बताई।

स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी महाराज का जीवन एक प्रेरणा है, जो यह सिखाता है कि साधना और गुरु की कृपा से जीवन को उच्चतम स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। उनका जीवन सिर्फ एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि उन्होंने समग्र मानवता के लिए ज्ञान और प्रेम का संदेश दिया। उनके योगदान से माउंट आबू और उनका आश्रम आज भी लाखों साधकों और भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

स्वामीजी के व्यक्तित्व में जो शांति, प्रेम, और ज्ञान था, वह आज भी उनके अनुयायियों और भक्तों के दिलों में जीवित है। उनके द्वारा स्थापित की गई “सम्वित साधनायना” आज भी उन लोगों के लिए एक प्रमुख केंद्र है, जो जीवन में सच्चे ज्ञान की खोज में हैं।

Frequently Asked Questions (FAQ)

1. श्री स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी महाराज के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ क्या था?

स्वामी जी के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ वह था जब उन्होंने 1956 में कैलाश यात्रा की और वहाँ पवित्र आत्मलिंग का दर्शन किया। इस अनुभव ने उन्हें पूर्ण सन्न्यास के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

2. स्वामी ईश्वरानंद गिरि जी ने माउंट आबू में क्यों साधना की?

माउंट आबू में स्वामी जी को एक अद्भुत शांति और शांति का अहसास हुआ, जिसे उन्होंने दिव्य शक्ति से जुड़ा महसूस किया। उन्होंने यहाँ अपने साधना के वर्षों को बिताया और यह जगह उनके आत्मज्ञान के लिए उपयुक्त थी।

3. सम्वित साधनायना आश्रम की स्थापना कब हुई थी?

सम्वित साधनायना आश्रम की स्थापना 1971 में हुई थी, जब भक्तों ने स्वामी जी से आश्रम की स्थापना की अपील की। यह आश्रम श्री सोमनाथ मंदिर के पास स्थित है और यहाँ आत्मज्ञान की शिक्षा दी जाती है।

4. स्वामी जी की शिक्षाओं का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

स्वामी जी की शिक्षाओं का उद्देश्य सच्चे आत्मज्ञान को प्राप्त करना था। उन्होंने अपने प्रवचनों के माध्यम से भक्ति, ज्ञान और ध्यान के महत्व को बताया और साधकों को जीवन के सर्वोत्तम मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

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