स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने बताया, क्यों नहीं देनी चाहिए भगवान की मूर्ति या छवि उपहार में?

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Bhagwan Ki Murti Ya Chhavi Gift Mein Kyu Nahi Deni Chahiye: भगवान की मूर्तियाँ और छवियाँ भारतीय संस्कृति और भक्ति के सबसे महत्वपूर्ण प्रतीकों में से हैं। हमारी पूजा-पाठ, भक्ति और श्रद्धा का केंद्र इन देवताओं की मूर्तियों में समाहित होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्या भगवान की मूर्ति या छवि को उपहार में देना उचित है? स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, भगवान की मूर्तियों और छवियों का आदर करना चाहिए और उन्हें उपहार के रूप में देना न केवल अपमानजनक हो सकता है, बल्कि यह हमारी भक्ति को भी प्रभावित करता है। आइए, हम जानते हैं कि स्वामी जी ने इस विषय में क्या महत्वपूर्ण बातें साझा की हैं।

भगवान की मूर्तियों और छवियों का आदर और सेवा:

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने भगवान की मूर्तियों और छवियों को सम्मान देने के महत्व को प्रमुखता से समझाया है। भगवान की मूर्ति घर में तब तक रखनी चाहिए, जब तक हम उनकी उचित सेवा करने में सक्षम हों। अगर घर में बहुत सारी मूर्तियाँ रखी जाएँ और उनकी सेवा ठीक से न हो, तो यह भगवान का अपमान हो सकता है। इसलिए, स्वामी जी का सुझाव है कि घर में उतनी ही मूर्तियाँ रखें, जितनी आप सही तरीके से सेवा कर सकते हैं।

जब भगवान की छवि या मूर्ति घर में रखी जाती है, तो उनका ध्यान रखना और उन्हें उचित स्थान पर रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि मूर्तियाँ नज़रों से ओझल हो जाती हैं या उनके ऊपर धूल जमी रहती है, तो यह भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान की कमी को दर्शाता है।

Bhagwan ki moortiyan GIFT main kyun nahi dena chahiye

उपहार में भगवान की मूर्तियाँ देना क्यों नहीं चाहिए? (Uphaar mein Bhagwan ki moortiyan kyun nahi dena chahiye?)

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने उपहार में भगवान की मूर्तियाँ देने को गलत बताया है। उनके अनुसार, भगवान की मूर्तियाँ किसी उपहार के रूप में नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे उनकी पवित्रता और गरिमा में कमी आ सकती है। जब हम भगवान की मूर्ति या छवि को केवल एक वस्तु की तरह दूसरों को देते हैं, तो इससे उनकी महत्वता और सम्मान पर असर पड़ता है।

उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति भगवान की मूर्ति उपहार के रूप में स्वीकार करता है, और वह उनका उचित सम्मान नहीं करता, तो यह मूर्ति केवल एक सजावटी वस्तु बनकर रह जाती है। यह हमारे धर्म और भक्ति के उद्देश्य के खिलाफ है। स्वामी जी का कहना है कि भगवान की मूर्ति को तब तक नहीं स्वीकार करना चाहिए, जब तक हम यह सुनिश्चित न कर लें कि हम उसका उचित सम्मान और सेवा कर पाएंगे।

धार्मिक प्रतीकों का व्यावसायिक उपयोग:

स्वामी जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भगवान के नाम और चित्रों का व्यावसायिक उपयोग करना पूरी तरह से गलत है। आजकल हम देखते हैं कि थैलों, कार्डों, और अन्य वस्तुओं पर भगवान के नाम या छवि को छापा जाता है। यह न केवल भगवान के प्रति अपमानजनक है, बल्कि यह उनकी पवित्रता को भी नष्ट करता है।

स्वामी जी का कहना है कि भगवान का नाम और रूप किसी पैसों के लालच में नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। धार्मिक प्रतीकों का उपयोग व्यापारिक लाभ के लिए करना हमारी भक्ति को भ्रष्ट करता है। भगवान के नाम को तंबाकू के पैकेट पर छापने या थैले पर लगाने से, हम उनका अपमान करते हैं, और यह हमें और समाज को धार्मिक दृष्टि से ग़लत दिशा में ले जाता है।

पुरानी मूर्तियों या छवियों का सही तरीके से निपटान:

जब भगवान की मूर्तियाँ या छवियाँ पुरानी हो जाती हैं या टूट जाती हैं, तो उन्हें सम्मानपूर्वक निपटाना चाहिए। स्वामी जी का मानना है कि भगवान की छवि को कभी भी बिना सम्मान के फेंकना नहीं चाहिए। अगर मूर्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता, तो उसे पवित्र जल में विसर्जित करना चाहिए या किसी पवित्र स्थान पर समाधि देना चाहिए। इस तरह, हम भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान को बनाए रखते हैं।

भगवान की मूर्तियों या छवियों का अपमान करने से हमारी भक्ति कमजोर हो सकती है, और यही कारण है कि हमें इन प्रतीकों को सही तरीके से देखभाल और सम्मान देना चाहिए।

सच्ची भक्ति और श्रद्धा का महत्व:

सच्ची भक्ति केवल रिवाजों और रस्मों का पालन करने से नहीं आती, बल्कि यह हमारे दिल से भगवान के प्रति श्रद्धा और प्रेम से उत्पन्न होती है। अगर हम भगवान के नाम और रूप का सम्मान करते हैं, तो हमारी भक्ति में वास्तविकता और शुद्धता होती है। स्वामी जी ने यह भी कहा कि केवल दिखावे के लिए पूजा करना या धार्मिक प्रतीकों का व्यावसायिक उपयोग करना, हमारी भक्ति को भ्रष्ट करता है।

यह सही है कि भक्ति में सच्चाई, निष्कलंक भावनाएँ और भगवान के प्रति सम्मान होना चाहिए। जब हम भगवान की पूजा करते हैं, तो यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें श्रद्धा से सम्मानित करें और उनके प्रतीकों का दुरुपयोग न करें।

निष्कर्ष:

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज की शिक्षाएँ हमारे जीवन में वास्तविक भक्ति और भगवान के प्रतीकों के सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। भगवान की मूर्तियों और छवियों को सही तरीके से रखना, उपहार में न देना, और उनका अपमान न करना, हमारी भक्ति को सशक्त करता है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भगवान की पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी मानसिकता और दिल की श्रद्धा का प्रतीक है।

अगर हम भगवान के नाम और रूप का आदर करते हैं, तो हमारी भक्ति भी सही दिशा में विकसित होती है, और इससे हमें आत्मिक शांति और संतुष्टि मिलती है।

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FAQ

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, भगवान की मूर्ति या छवि को उपहार में देना उचित नहीं है। इसे केवल सम्मान और श्रद्धा के साथ पूजा में रखा जाना चाहिए, न कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए।

घर में उतनी ही मूर्तियाँ रखें, जितनी आप उनकी सही तरीके से सेवा कर सकते हैं। अधिक मूर्तियाँ रखना, जिनकी आप सेवा नहीं कर सकते, भगवान के प्रति अपमान हो सकता है।

भगवान के नाम और चित्र का व्यावसायिक वस्तुओं पर उपयोग करना उनकी पवित्रता और सम्मान को कम करता है। इसे केवल श्रद्धा और पूजा के लिए ही इस्तेमाल करना चाहिए।

स्वामी जी का कहना है कि पुराने या टूटे हुए भगवान के चित्रों और मूर्तियों का अपमान नहीं करना चाहिए। इन्हें पवित्र जल में विसर्जित किया जा सकता है या पवित्र स्थान पर समाधि देने के लिए रखा जा सकता है।

भगवान की मूर्तियाँ उपहार के रूप में देने से उनकी पवित्रता कम होती है। मूर्तियाँ तभी दी जानी चाहिए जब उनका सम्मान और पूजा करने की पूरी श्रद्धा हो। बिना सम्मान के उन्हें उपहार में देना धर्म के खिलाफ है।

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