श्री प्रेमानंद जी महाराज ने भगवान पर भरोसा बढ़ाने वाली एक सुंदर और शिक्षाप्रद कहानी सुनाई। यह कहानी हमें भगवान पर अडिग विश्वास रखने की महिमा सिखाती है।

एक समय की बात है, दो बालिकाएं—एक राजकुमारी और एक जमींदार की पुत्री—आपस में गहरी मित्र थीं। एक दिन वे दोनों अपने गाँव के पास एक भगवत प्रेमी महात्मा से मिलने गईं। महात्मा संत और सेवक थे, जो सदैव प्रभु की सेवा और भजन में मग्न रहते थे।
महात्मा का जीवन केवल सेवा और सुमिरन में डूबा हुआ था, और वे निरंतर भगवान की पूजा में रत रहते थे। दोनों बालिकाओं ने देखा कि कैसे महात्मा भगवान की पूजा करते हैं। उनका हृदय सुमिरन और सेवा की शक्ति से भर उठा। वे सोचने लगीं, “हमें भी ठाकुर की सेवा करनी चाहिए।”
महात्मा के चरणों में शरण लेकर, दोनों बालिकाओं ने प्रार्थना की, “गुरुदेव, हमें भी भगवान की सेवा का आशीर्वाद दें।” महात्मा ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और उन्हें उपदेश दिया कि सेवा में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह समझाया कि सेवा और पूजा में कभी कोई अपराध न हो, और यह कि पूजा में सही मनोभाव और निष्ठा होना जरूरी है।
महात्मा ने उन्हें एक शिल का टुकड़ा दिया और कहा, “इसे भगवान की मूर्ति मानकर सेवा करो।” बालिकाओं ने उन शिलों को भगवान के रूप में स्वीकार किया और नियमित रूप से उनकी पूजा और भजन करने लगीं। उनका विश्वास दिन-ब-दिन मजबूत होने लगा, और वे भगवान से गहरे रूप से जुड़ने लगीं।
समय के साथ, राजकुमारी का विवाह एक राजकुमार से तय हो गया। शादी के बाद, जब वह अपने घर से विदा होकर ससुराल जा रही थी, तो उसने अपने ठाकुर को जो शिल में स्थापित थे, अपने साथ ले लिया। वह उन्हें किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहती थी। एक दिन जब वह अपने पति के साथ यात्रा कर रही थी, राजकुमार ने देखा कि उसकी पत्नी का हृदय अपने ठाकुर में इतना लीन है कि वह किसी और से बात नहीं करती थी। उसकी पूजा और भक्ति ने राजकुमार के दिल में एक गहरी जलन पैदा की, और वह सोचने लगा कि यह ठाकुर क्या है जो उसे अपनी पत्नी से दूर कर रहा है?
राजकुमार ने एक दिन यह सोचा कि यदि यह शिल वस्तु उनकी पत्नी के जीवन में परेशानी का कारण बन रही है, तो वह इसे नदी में फेंक दे। लेकिन राजकुमारी ने ठान लिया कि अगर उसके ठाकुर उसके पास नहीं होंगे, तो वह अपनी जान तक दे सकती है। उसकी भक्ति और विश्वास इतने प्रगाढ़ थे कि वह बिना अपने ठाकुर के जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
राजकुमार ने देखा कि उसकी पत्नी के चेहरे पर गहरी चिंता और उदासी है, और उसे समझ में आया कि इस शिल में बसा भगवान ही उसकी पत्नी की असली शक्ति हैं। वह अपने घुटनों पर गिर गया और राजकुमारी से कहा, “मुझे अब समझ में आ गया है। मुझे बताओ, मैं तुम्हारी खुशी के लिए क्या कर सकता हूँ?”
राजकुमारी ने कहा, “यदि आप मुझे खुशी देना चाहते हैं, तो मेरे ठाकुर को मेरे पास लाकर दीजिए।” अंततः, राजकुमार ने अपनी पत्नी की बात मानी, और वह शिल वापस ले आया। राजकुमारी का चेहरा फिर से खिल उठा, और वह अपने भगवान के साथ संतुष्ट हो गई।
श्री प्रेमानंद जी महाराज के उपदेशों से हमें यह सीखने को मिलता है कि भगवान और गुरु पर विश्वास रखने से जीवन में कोई भी संकट हमें डिगा नहीं सकता। जब हम अपने हृदय में सच्चे भाव से भगवान को बैठाते हैं और गुरु की कृपा से सच्चे मार्ग पर चलते हैं, तो जीवन में सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है।
शिक्षा:
- भगवान और गुरु पर विश्वास – भक्ति और श्रद्धा से भरा जीवन ही सच्ची सुख-शांति का कारण बनता है।
- सेवा का सही भाव – सेवा और पूजा में सही भावना और निष्ठा होनी चाहिए।
- भक्ति का अडिग विश्वास – जब तक हम अपने प्रभु और गुरु पर अडिग विश्वास नहीं रखते, तब तक आत्मसंतुष्टि प्राप्त नहीं होती।
हमेशा याद रखें:
जब हम अपने मन को प्रभु की सेवा में समर्पित कर देते हैं, तो कोई भी संकट हमें डिगा नहीं सकता। श्री प्रेमानंद जी महाराज की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अपने गुरु और भगवान के प्रति विश्वास रखने से जीवन की हर कठिनाई आसान हो जाती है।