रामानुजाचार्य भारतीय दर्शन के महान आचार्य थे, जिन्होंने विशिष्टाद्वैत (Vishishtadvaita) दर्शन की नींव रखी। उनका योगदान न केवल दर्शनशास्त्र में था, बल्कि उन्होंने भारतीय धार्मिक जीवन को भी एक नई दिशा दी। उनका जन्म 1017 ईस्वी में हुआ था और वे श्रीविष्णु के महान भक्त थे। उनकी शिक्षाओं ने भारतीय भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रामानुजाचार्य का जन्म तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे और उनका प्रारंभिक जीवन धार्मिक वातावरण में बीता। बचपन में ही उनकी गहरी रुचि वेद, उपनिषद, और धार्मिक शास्त्रों में थी। उन्होंने यादवप्रकाश से वेदांत और अन्य धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा ली। हालांकि, उनके गुरु यादवप्रकाश उनसे ईर्ष्या करने लगे, क्योंकि रामानुज की धार्मिक समझ और लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी।
दर्शन और विचार
रामानुजाचार्य का दर्शन विशिष्टाद्वैत (Qualified Non-dualism) के रूप में प्रसिद्ध है। उनके अनुसार, ब्रह्म (ईश्वर) निराकार (formless) नहीं है, बल्कि साकार (with form) है और पूरे ब्रह्मांड का आत्मा है। वे मानते थे कि ब्रह्म, आत्मा (जीव) और प्रकृति तीन अलग-अलग वास्तविकताएँ हैं, जो एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। हालांकि ये तीनों अलग-अलग हैं, लेकिन इनका अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है और वे ब्रह्म के ही रूप हैं।
रामानुजाचार्य ने यह स्पष्ट किया कि भक्ति (devotion) ही आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाती है। उनके अनुसार, मोक्ष केवल ज्ञान प्राप्ति से नहीं, बल्कि भगवान के प्रति निरंतर भक्ति और प्रेम से प्राप्त होता है।
रामानुजाचार्य के प्रमुख ग्रंथ
रामानुजाचार्य ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें श्री भाष्य (Sri Bhashya), भगवद गीता भाष्य (Bhagavad Gita Bhashya), और वेदार्थसंग्रह (Vedarthasamgraha) शामिल हैं। इन ग्रंथों में उन्होंने वेदांत दर्शन का गहरा विश्लेषण किया और वेदों के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट किया। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान श्रीविष्णु के अलावा कोई अन्य ईश्वर नहीं है और उनका मार्गदर्शन ही एकमात्र सत्य है।
रामानुजाचार्य के जीवन पर हमले
रामानुजाचार्य पर कई बार हमले किए गए, विशेष रूप से उनके गुरु यादवप्रकाश द्वारा। एक घटना में, जब रामानुजाचार्य गंगा यात्रा पर गए थे, उनके गुरु ने उन्हें मारने की योजना बनाई, लेकिन रामानुजाचार्य को इस बारे में सूचना मिल गई और वे बचकर कांची चले गए। बाद में, यादवप्रकाश ने अपनी गलती स्वीकार की और रामानुजाचार्य के शिष्य बन गए।
इसके अलावा, श्रीरंगम के रंगनाथस्वामी मंदिर के प्रधान पुजारी ने भी रामानुजाचार्य को मारने की साजिश रची थी, लेकिन रामानुजाचार्य ने किसी प्रकार से उसकी साजिश को नाकाम कर दिया। यह घटनाएँ उनकी आस्था और दृढ़ता को दर्शाती हैं।
रामानुजाचार्य का उत्तरकालीन प्रभाव
रामानुजाचार्य का प्रभाव आज भी भारतीय धार्मिक जीवन में महसूस किया जाता है। उन्होंने वैष्णव धर्म को व्यापक रूप से फैलाया और श्रीविष्णु की उपासना को लोकप्रिय बनाया। उनके अनुयायी आज भी उनके आचार्यत्व को मानते हैं, और वे उनके द्वारा स्थापित मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। उनके अनुयायी भक्ति योग के सिद्धांतों का पालन करते हैं और श्रीविष्णु की भक्ति में जीवन बिता रहे हैं।
रामानुजाचार्य के योगदान को देखकर उन्हें भारत में भक्ति आंदोलन के पितामह के रूप में सम्मानित किया जाता है। उन्होंने वेदों को सरल और व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे लाखों लोग आस्थावान हुए।
निष्कर्ष
रामानुजाचार्य ने न केवल भारतीय वेदांत दर्शन को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। उनका जीवन, उनके विचार और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें भक्ति, सत्य, और प्रेम की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं। उनके योगदान का प्रभाव भारतीय संस्कृति में अनंतकाल तक महसूस किया जाएगा।
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. रामानुजाचार्य कौन थे?
रामानुजाचार्य एक महान हिन्दू धर्मगुरु और दार्शनिक थे, जिन्होंने विशिष्टाद्वैत दर्शन की स्थापना की। वे भक्तिपंथ के प्रबल समर्थक थे और अपने जीवन में श्रीविष्णु की भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के महत्व पर बल दिया।
2. रामानुजाचार्य ने किस दर्शन की स्थापना की?
रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत दर्शन (Qualified Non-Dualism) की स्थापना की। इसके अनुसार, आत्मा और परमात्मा में एकता होती है, लेकिन दोनों के बीच अंतर भी होता है। वे यह मानते थे कि भगवान श्रीविष्णु के साथ निरंतर भक्ति और सेवा से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
3. रामानुजाचार्य के प्रमुख ग्रंथ कौन से थे?
रामानुजाचार्य के प्रमुख ग्रंथों में ‘श्री भाष्य’, ‘भगवद गीता भाष्य’, और ‘वेदार्थसंग्रह’ शामिल हैं। इनके अतिरिक्त, ‘गद्य त्रयम्’ जैसे अन्य ग्रंथ भी उनके दर्शन और भक्ति के महत्व को स्पष्ट करते हैं।
4. रामानुजाचार्य का योगदान भारतीय भक्ति आंदोलन में क्या था?
रामानुजाचार्य ने भारतीय भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भक्ति को एक दार्शनिक और धार्मिक आधार प्रदान किया और लोगों को भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और सेवा की दिशा में मार्गदर्शन किया। उनका मानना था कि भक्ति ही मोक्ष की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।
5. रामानुजाचार्य की उपास्य देवी कौन थीं?
रामानुजाचार्य की उपास्य देवी श्रीविष्णु थीं। वे श्रीविष्णु की भक्ति को सर्वोत्तम मानते थे और उनका दर्शन इस पर आधारित था कि भगवान श्रीविष्णु ही सर्वोच्च सत्य और अनंत शक्ति के रूप में पूजनीय हैं।