घर छोड़ते समय प्रेमानंद जी महाराज के मन में कौन से 3 सवाल उठे थे? जानिए उनकी अद्भुत यात्रा!

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राधा वल्लभ महाराज जी का जीवन एक साधक की यात्रा रही है, जिसमें उन्होंने भक्ति, तपस्या और भगवान के प्रति अडिग विश्वास से हर चुनौती का सामना किया। उनकी यात्रा से हम सीख सकते हैं कि जब जीवन में उद्देश्य स्पष्ट हो, तो कष्ट और कठिनाइयाँ भी आत्मिक विकास के लिए होती हैं। महाराज जी ने जब घर छोड़ने का निर्णय लिया, तब उनके मन में तीन महत्वपूर्ण प्रश्न उठे, जो उनके आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की दिशा को स्पष्ट करते हैं। आइए जानते हैं वह तीन प्रश्न, और उनके उत्तर किस तरह से भगवान की कृपा और दर्शन से प्राप्त हुए।

swami Premanand Ji Maharaj  -

1. “यहां तो अम्मा पवाती, वहाँ कौन पवाएगा?” (यहां तो माँ खाना देती हैं, वहाँ कौन खिलाएगा?)

महाराज जी ने जब घर छोड़ा, तो पहला प्रश्न उनके मन में माँ के बारे में था। माँ ही वह व्यक्ति थी, जो उन्हें हर दिन भोजन देती थीं, उनका ख्याल रखती थीं, और जीवन में हर कठिनाई के बावजूद उन्हें सहारा देती थीं। ऐसे में, घर छोड़ने के बाद यह सवाल उनके मन में उठा, “वहाँ कौन मुझे भोजन देगा?” यह सवाल एक मानवतावादी दृष्टिकोण से था, क्योंकि एक बच्चे के लिए माँ से बढ़कर कोई और नहीं होता।

लेकिन महाराज जी ने बहुत जल्द इस सवाल का उत्तर खुद से ही दिया। उनका विश्वास था कि भगवान जब किसी को अपने मार्ग पर लगाते हैं, तो वह उसे हर प्रकार की सहायता प्रदान करते हैं। वे समझ गए कि जहाँ भी वे जाएंगे, भगवान उनकी देखभाल करेंगे और वही उन्हें वही देंगे, जो उनकी आत्मिक यात्रा के लिए जरूरी होगा। उन्होंने अपना जीवन भगवान की कृपा पर छोड़ दिया और कभी भी भोजन के लिए किसी से नहीं पूछा, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि भगवान का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहेगा।

2. “यहां तो घर में रहते हो, वहाँ कहाँ रहोगे?”

दूसरा सवाल था कि घर छोड़ने के बाद वे कहाँ रहेंगे? जब किसी व्यक्ति को अपने घर और परिवार से दूर जाना पड़ता है, तो यह सवाल हर किसी के मन में उठता है। घर से बाहर रहने की शुरुआत में यह एक बहुत बड़ा चिंता का विषय हो सकता है। महाराज जी ने भी इसे महसूस किया, लेकिन वे जानते थे कि जो रास्ता उन्होंने चुना है, वह एक आध्यात्मिक मार्ग है।

महाराज जी के लिए यह सवाल इसलिए भी था, क्योंकि घर से बाहर निकलने के बाद उनका जीवन संघर्षों से भरा था। काशी में, वृंदावन में, गंगा के किनारे या किसी भी स्थान पर उन्होंने कभी भी शारीरिक और मानसिक आराम का सुख नहीं पाया। लेकिन भगवान पर उनका विश्वास इतना मजबूत था कि उन्होंने इस सवाल का उत्तर भी अपनी आत्मिक यात्रा में पाया। वे समझ गए कि जहाँ भी भगवान ने रखा, वहीं उनका स्थान होगा, क्योंकि उनका उद्देश्य सिर्फ भगवान के साथ मिलना और आत्मज्ञान प्राप्त करना था। घर से बाहर होने के बावजूद उनका ध्यान हमेशा भगवान पर केंद्रित रहा।

3. “पूरी ज़िन्दगी किसके सहारे काटोगे?

तीसरा और सबसे गहरा सवाल था कि महाराज जी पूरी ज़िन्दगी किसके साथ बिताएंगे। यह सवाल उनके अकेलेपन से जुड़ा हुआ था। जब कोई व्यक्ति अपने घर-परिवार को छोड़कर अकेले यात्रा पर निकलता है, तो उसके मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

महाराज जी ने इस सवाल का उत्तर भी भगवान की कृपा और प्रेम से पाया। उन्होंने महसूस किया कि भौतिक जीवन में कोई भी व्यक्ति स्थायी नहीं होता, लेकिन भगवान के साथ उनका संबंध हमेशा बना रहेगा। उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट किया – “मैं भगवान के साथ ही अपना जीवन बिताऊँगा।” उन्होंने यह समझ लिया कि उनका मार्ग एकांत और आत्मनिर्भरता का था, और इस यात्रा में भगवान ही उनका सबसे बड़ा सहारा होंगे। वे भगवान की सेवा में अपने जीवन को समर्पित करने के लिए पूरी तरह तैयार थे।

भगवान की कृपा से कठिनाइयों का सामना

महाराज जी के जीवन में इन तीन प्रश्नों का महत्व इसलिए था क्योंकि इन सवालों के उत्तर से ही उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य निर्धारित हुए। घर छोड़ने के बाद उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनका शरीर भी कई कष्टों का सामना करता रहा, जैसे किडनी की बीमारी, दवाइयों के पैसे नहीं होना, और कभी भूखा रहना। लेकिन महाराज जी का दृढ़ विश्वास था कि भगवान उनके साथ हैं, और भगवान के आशीर्वाद से उन्हें हमेशा जीवन में वही मिला, जो उन्हें आवश्यकता थी।

जब वे काशी के घाटों पर रहते थे, तो कभी कभी भिक्षाटन करना पड़ता था, लेकिन वे कभी भी दूसरों से सहायता नहीं मांगते थे। उनका नियम था कि वे किसी आश्रम में नहीं जाएंगे, और न ही जीवन में किसी से कुछ मांगेंगे। जो भी जीवन में मिलेगा, वही स्वीकार करेंगे। यह सब उन्होंने भगवान पर पूर्ण विश्वास के साथ किया।

कष्टों से भगवान का प्यार

महाराज जी का कहना था कि कष्टों में ही भगवान का असली प्यार मिलता है। जब एक साधक अपने दुखों और कष्टों को भगवान के चरणों में समर्पित कर देता है, तब वह महसूस करता है कि भगवान ने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा। उनका अनुभव यह था कि जब वे गंगा के किनारे अकेले होते थे और प्रभु को पुकारते थे, तो वह कष्ट का समय उनके लिए आत्मिक आनंद और शांति का स्रोत बन जाता था।

महाराज जी ने जो कुछ भी अनुभव किया, उसे उन्होंने अपने भक्तों से साझा किया। उनका जीवन यह सिखाता है कि जब किसी व्यक्ति का उद्देश्य स्पष्ट हो, तो वह किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है। भक्ति का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन जब किसी का मन पूरी तरह से भगवान में रम जाता है, तो वह हर कष्ट को एक अवसर के रूप में देखता है।

निष्कर्ष

महाराज जी का जीवन एक प्रेरणा है। उनके मन में उठे तीन प्रश्न – “यहां तो माँ खाना देती हैं, वहाँ कौन खिलाएगा?”, “यहां तो घर में रहते हो, वहाँ कहाँ रहोगे?”, और “पूरी ज़िन्दगी किसके साथ बिताओगे?” – उनके आध्यात्मिक सफर के महत्वपूर्ण मोड़ थे। उन्होंने कभी भी भौतिक जीवन की चिंता नहीं की, क्योंकि उनका उद्देश्य केवल भगवद-प्राप्ति था। उनका जीवन यह सिखाता है कि जब हम भगवान की राह पर चलते हैं, तो वह हमें हर कदम पर अपने आशीर्वाद से मार्गदर्शन देते हैं, और हमारे जीवन के सभी कष्टों को अपनी कृपा से दूर करते हैं।

महाराज जी का जीवन हमें यह समझाता है कि भक्ति और तपस्या की राह में कष्ट आएंगे, लेकिन यदि हमारी श्रद्धा और विश्वास दृढ़ हो, तो भगवान हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते। वे हमारे साथ हमेशा रहते हैं, और हम उनका प्यार हर कठिनाई में महसूस करते हैं।

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