अगर कोई गंदा आचरण छूट नहीं रहा हो तो यह सुन लेना बहुत बल मिलेगा !! | भजन मार्ग | प्रेमानंद जी महाराज

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आजकल के इस व्यस्त और भटके हुए समाज में, जहां व्यक्ति अक्सर अपनी गलतियों और बुराईयों से जूझते हैं, वहां प्रेमानंद जी महाराज के उपदेश एक नई दिशा दिखाते हैं। वीडियो का शीर्षक “अगर कोई गंदा आचरण छूट नहीं रहा हो तो यह सुन लेना बहुत बल मिलेगा” (If bad behavior doesn’t leave you, listen to this, you will gain strength) जीवन में भक्ति और शरणागति के महत्व को स्पष्ट करता है। महाराज हमें यह सिखाते हैं कि बुराईयों से छुटकारा पाना आसान नहीं है, लेकिन अगर हम प्रभु की शरण में आकर उनका नाम लें, तो हर असंभव सा कार्य भी संभव हो सकता है।

Premanand Ji Maharaj's guidance on spiritual empowerment and overcoming negative traits through Bhajan Marg

ग़लतियों का सामना – मानव जीवन की वास्तविकता

प्रेमानंद जी महाराज का सबसे बड़ा संदेश है कि हमें अपनी कमियों और गलतियों को स्वीकार करना चाहिए। वह कहते हैं, “हम बुरे हैं, पर आपके हैं।” (“हम बुरे हैं, लेकिन हम आपके हैं।”)। यह स्वीकार्यता जीवन में सुधार की शुरुआत है। हम सब अपने स्वभाव में कभी न कभी ग़लतियाँ करते हैं—चाहे वह गुस्सा हो, लालच हो, या फिर अहंकार। महाराज हमें यह बताते हैं कि बुराईयों से लड़ते हुए भी, अगर हम ईश्वर की शरण में रहते हैं, तो वह हमें सही रास्ते पर ले आते हैं।

नाम का महत्व: ध्यान और भजन से आत्मशुद्धि

प्रेमानंद जी महाराज ने नाम जप (नाम का जाप) के महत्व को भी बताया है। वह कहते हैं कि यदि हम किसी बुरी आदत या आचरण से छुटकारा नहीं पा रहे हैं, तो भी भगवान के नाम का जाप हमारे दिल और आत्मा को शुद्ध कर सकता है। वह कहते हैं, “राधा राधा, कृष्ण कृष्ण” का जाप करते रहिए। नाम जप हमें उस दिव्य शक्ति से जोड़ता है, जो हमारे जीवन के हर दुख को दूर करती है और हमें प्रभु की ओर खींचती है।

महाराज का कहना है कि जब हम गिरते हैं, तो भी हमें उठने का प्रयास करना चाहिए। भले ही हम बार-बार गिरें, हमारा प्रभु की ओर बढ़ना कभी थमेगा नहीं। “हम गिरेंगे, फिर भी प्रभु की ओर कदम बढ़ाएंगे।” (हम गिरते हुए भी प्रभु की ओर चलेंगे।)

शरणागति: भक्ति का असली मार्ग

शरणागति (संपूर्ण समर्पण) महाराज के उपदेश का एक केंद्रीय तत्व है। यह उस अवस्था को कहते हैं जब हम पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित हो जाते हैं और अपनी असफलताओं को स्वीकार कर लेते हैं। महाराज का कहना है कि भले ही हम अपने दोषों को नहीं छोड़ पा रहे हैं, लेकिन अगर हम ईश्वर की शरण में रहते हैं, तो वह हमें सही मार्ग पर चलने की शक्ति देंगे।

वह कहते हैं, “हम बुरे हैं, पर आपके हैं, और आप हमें कभी नहीं छोड़ेंगे।” (हम बुरे हैं, लेकिन हम आपके हैं, और आप हमें कभी नहीं छोड़ेंगे।) यही सच्ची भक्ति का मार्ग है—ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास और समर्पण।

सत्संग का महत्व: एक दूसरे से सीखना

प्रेमानंद जी महाराज ने सत्संग (धार्मिक सभा) के महत्व को भी बताया है। वह कहते हैं कि जब हम एक दूसरे के साथ बैठकर भगवान का नाम जपते हैं और एक दूसरे की भक्ति से प्रेरित होते हैं, तो हमारे जीवन में स्थिरता और शांति आती है। सत्संग हमें हर कठिनाई में धैर्य रखने की शक्ति देता है और हमें एक दूसरे के साथ भगवान के नाम का जाप करने के लिए प्रेरित करता है।

प्रभु की कृपा: मोक्ष की ओर मार्ग

प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि भगवान की कृपा ही हमें इस संसार के बंधनों से मुक्त करती है। वह कहते हैं कि भले ही हमारी स्थिति कमजोर हो, और हम बार-बार गलती करें, फिर भी भगवान की कृपा से हमारा उद्धार निश्चित है। वह बताते हैं, “जो प्रभु की शरण में आते हैं, उनके लिए भगवान ने पहले से ही उद्धार तय कर रखा है।” (जो प्रभु की शरण में आते हैं, उनके लिए भगवान ने उद्धार तय कर रखा है।)

हमारा जीवन केवल भगवान की कृपा पर निर्भर है, और जब हम पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाते हैं, तब वह हमें शांति और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

निष्कर्ष: भक्ति से मिलती है आत्मशांति और मोक्ष

अंततः, प्रेमानंद जी महाराज का संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में जितनी भी कठिनाइयाँ हों, अगर हम प्रभु के प्रति भक्ति और समर्पण रखें, तो वह हमें सही मार्ग पर चलने की शक्ति देंगे। चाहे हम कितनी भी गलतियाँ करें, नाम जप और शरणागति हमें हमेशा ईश्वर के निकट ले जाएगी और हमारी जीवन की कठिनाइयों को दूर कर देगी।

महाराज के अनुसार, “हमने भगवान के नाम में अपना सहारा लिया है, और जो उनके शरण में आते हैं, उनका उद्धार निश्चित है।” (हमने भगवान के नाम में सहारा लिया है, और जो भगवान की शरण में आते हैं, उनका उद्धार तय है।)

आइए, हम सभी अपने जीवन में भक्ति का अनुसरण करें, भगवान का नाम जपें और शरणागति की राह पर चलकर आत्मशांति और मोक्ष की प्राप्ति करें।


मुख्य बिंदु:

  • शरणागति: अपनी कमियों को स्वीकार कर भगवान की शरण में रहना।
  • नाम जप: भगवान के नाम का जाप जीवन में शक्ति और शांति लाता है।
  • भक्ति: प्रभु के प्रति श्रद्धा और समर्पण से ही आत्मशुद्धि होती है।
  • सत्संग: एक साथ बैठकर भक्ति में लीन होने से आत्मबल बढ़ता है।
  • भगवान की कृपा: भगवान की शरण में आत्मसमर्पण करने से उद्धार निश्चित है।

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