जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय | Jagadguru Rambhadracharya Biography

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य का नाम भारतीय धर्म और संस्कृति में एक आदर्श बन चुका है। वे एक महान संत, विद्वान, और समाज सुधारक हैं, जिनका जीवन कई पीढ़ियों को प्रेरित करता है। उनका योगदान न केवल धार्मिक क्षेत्र में, बल्कि शिक्षा, साहित्य, और विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए भी अतुलनीय है।

प्रारंभिक जीवन (Early Life)

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांदिखुर्द गाँव में हुआ था। उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ, और उनकी माता का नाम शाची देवी मिश्रा और पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्रा था। उनका जन्म भगवान श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति के कारण बेहद विशेष था।

बाल्यकाल में ही, रामभद्राचार्य ने एक गंभीर शारीरिक समस्या का सामना किया। महज दो महीने की आयु में उनकी आँखों में त्रिकोमास नामक बीमारी हो गई, जिसके कारण वे अपनी आँखों की रोशनी हमेशा के लिए खो बैठे। लेकिन भगवान श्रीराम की कृपा से, उन्होंने अपने दिव्य दृष्टि से वेद, शास्त्र और संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन किया।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय | Jagadguru Rambhadracharya Biography

शिक्षा और विद्या (Education & Learning)

रामभद्राचार्य ने बचपन से ही अद्भुत मेमोरी क्षमता का प्रदर्शन किया। पाँच साल की उम्र में ही उन्होंने भगवद गीता का पूरा पाठ याद कर लिया था। आठ वर्ष की आयु तक, वे रामचरितमानस का पूरा काव्य कंठस्थ कर चुके थे। इसके बाद उन्होंने संस्कृत के वेद, उपनिषद, और संस्कृत व्याकरण की विद्या में महारत हासिल की।

उन्होंने अपनी शिक्षा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से पूरी की। संस्कृत में स्नातक और स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडल जीतने के बाद, उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें वाचनपति (DLitt) की उपाधि भी प्राप्त हुई।

रामभद्राचार्य का संत जीवन (Life as a Saint)

रामभद्राचार्य ने 1983 में वैरागी initiation लिया और इसके बाद उनका नाम रामभद्रदास रखा गया। इसके बाद उन्होंने तुलसी पीठ की स्थापना की, जो चित्रकूट में स्थित है। यहाँ उन्होंने भगवान राम की पूजा-अर्चना और वेदों का प्रचार शुरू किया।

1989 में, रामभद्राचार्य को जगद्गुरु रामानंदाचार्य के पद पर आसीन किया गया। वे भारतीय संत परंपरा के महान अध्येता और काव्य रचनाकार बने। उन्होंने संस्कृत के वेदांत पर अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें श्रीरामकृपाभाष्य और आनंदभाष्य प्रमुख हैं।

विकलांगों के लिए योगदान (Contribution for the Disabled)

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का सबसे बड़ा योगदान विकलांगों के लिए है। स्वयं दिव्यांग होने के बावजूद, उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैंडिकैप यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जो विशेष रूप से दृष्टिहीन, मूक-बधिर और शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों के लिए उच्च शिक्षा प्रदान करती है। यह विश्वविद्यालय संस्कृत, हिंदी, संगीत, कला, और अन्य विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है।

रामचरितमानस का आलोचनात्मक संस्करण (Critical Edition of Ramcharitmanas)

तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने इसके आलोचनात्मक संस्करण को तैयार किया, जिसमें उन्होंने 50 विभिन्न संस्करणों का अध्ययन किया और तुलसीदास के वास्तविक शब्दों को संरक्षित किया। यह संस्करण 2006 में प्रकाशित हुआ और इसे तुलसी पीठ संस्करण के नाम से जाना जाता है।

राम मंदिर विवाद में योगदान (Contribution in Ram Mandir Case)

2003 में, जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अयोध्या मामले में गवाह के रूप में अपना बयान दिया। उन्होंने हिंदू धर्म के ग्रंथों और इतिहास का हवाला देते हुए अदालत में राम जन्मभूमि के महत्व को सिद्ध किया। उनकी गवाही का अहम योगदान था, और सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उनका योगदान महत्वपूर्ण था, जिसने राम मंदिर के निर्माण की दिशा में निर्णायक मोड़ प्रदान किया।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का दृष्टिकोण (Philosophy and Vision)

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन दर्शन रामकृपा, भक्ति, और सेवा पर आधारित है। उनका मानना था कि भगवान राम की भक्ति से न केवल आत्मा का उद्धार होता है, बल्कि समाज का भी कल्याण होता है। वे हमेशा निःस्वार्थ सेवा में विश्वास रखते थे और उन्होंने अपने जीवन में इसे पूरी तरह से अपनाया।

निष्कर्ष (Conclusion)

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन अत्यंत प्रेरणादायक और समर्पण का प्रतीक है। उनका योगदान न केवल धार्मिक क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय है। उन्होंने जो कार्य विकलांगों, समाज के हाशिए पर रहने वालों और धर्म के प्रचार के लिए किया, वह अनमोल है। उनके जीवन और शिक्षाओं से हम सभी को प्रेरणा मिलती है।


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जगतगुरु रामभद्राचार्य से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

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