जानिए प्रेमानंद जी महाराज की किडनी के बारे में: क्या प्रेमानंद जी की किडनी कब से खराब है?

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प्रेमानंद जी महाराज, जो वृंदावन के एक प्रसिद्ध संत और गुरु हैं, अपनी दिव्य शिक्षाओं और जीवनशैली के लिए लोकप्रिय हैं। लेकिन एक अन्य पहलू जिसने उन्हें चर्चित किया है, वह है उनकी स्वास्थ्य समस्या – उनकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं। हालाँकि, यह जानकर हैरानी होती है कि पिछले 18 वर्षों से किडनी फेल होने के बावजूद, प्रेमानंद जी महाराज न केवल जीवन के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखते हैं, बल्कि हर दिन भक्ति, ध्यान और सेवा में लीन रहते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि प्रेमानंद जी महाराज की किडनी कब से खराब है, उनकी बीमारी के लक्षण क्या हैं, और वह किस प्रकार इस गंभीर स्वास्थ्य स्थिति से लड़ रहे हैं।

प्रेमानंद जी महाराज की किडनी कब से खराब है? (Premanand ji ki kidney kab se kharaab hai?)

प्रेमानंद जी महाराज को 18 साल पहले ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (ADPKD) नामक गंभीर किडनी बीमारी का सामना करना पड़ा। यह बीमारी जेनेटिक होती है, यानी यह माता-पिता से बच्चों में फैल सकती है। इस बीमारी में किडनी में गांठें बनती हैं और उनका आकार बढ़ने लगता है, जिससे किडनी का कार्य धीरे-धीरे बंद हो जाता है। यही कारण है कि प्रेमानंद जी महाराज की दोनों किडनियां गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी हैं, जिसके कारण उन्हें सप्ताह में तीन बार डायलिसिस करवानी पड़ती है।

प्रेमानंद जी महाराज की किडनी

क्या प्रेमानंद जी महाराज को डायलिसिस की जरूरत है?

जी हाँ, प्रेमानंद जी महाराज को अपनी खराब किडनियों के कारण नियमित डायलिसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वे सप्ताह में तीन बार डायलिसिस करवाते हैं, जो लगभग चार घंटे तक चलता है। हालांकि, इस सब के बावजूद, महाराज जी ने अपने जीवन को पूरी तरह से आध्यात्मिक साधना और सेवा में समर्पित किया है। वे हर दिन सुबह जल्दी उठकर वृंदावन की परिक्रमा करते हैं और अपने भक्तों के साथ भजन-सत्संग करते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज की किडनी का नामकरण (Premanand ji Maharaj ki kidney ka naam kya hai?)

विलक्षण बात यह है कि प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी किडनियों का नामकरण भी किया है। उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम “राधा” और दूसरी का नाम “कृष्ण” रखा है। उनका मानना है कि भगवान के ये दो रूप उनके शरीर में हैं, और यही विश्वास उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाए रखता है।

प्रेमानंद जी महाराज की बीमारी के लक्षण और इलाज

ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (ADPKD) के मरीजों में कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इनमें पीठ और पेट में दर्द, पैरों और आंखों में सूजन, सांस फूलने की समस्या, खून की कमी और पाचन संबंधी गड़बड़ी शामिल हैं। इस बीमारी का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं है, लेकिन डायलिसिस, किडनी ट्रांसप्लांट और जीवनशैली में सुधार से मरीजों को आराम मिल सकता है।

क्या यह बीमारी आम है?

वास्तव में, ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज 1000 में से केवल एक व्यक्ति को होती है। यह बीमारी अक्सर वयस्कों में 30 से 50 साल के बीच विकसित होती है। प्रेमानंद जी महाराज के मामले में यह बीमारी उनके युवावस्था में विकसित हुई, और यह उनके जीवन के एक अभिन्न भाग के रूप में सामने आई।

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन और सेवा

प्रेमानंद जी महाराज की किडनी की गंभीर समस्या के बावजूद, वह न केवल अपने जीवन को एक उच्च उद्देश्य के लिए समर्पित रखते हैं, बल्कि अपने सत्संग और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के माध्यम से हजारों लोगों को प्रेरित करते हैं। उनकी तपस्या, भक्ति और विश्वास का यह अद्वितीय उदाहरण है कि कैसे शारीरिक कष्ट के बावजूद, आत्मिक शांति और सेवा में पूर्ण समर्पण किया जा सकता है।

FAQ

प्रेमानंद जी महाराज की दोनों किडनियां लगभग 18 साल पहले खराब हो गई थीं। उन्हें ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (ADPKD) नामक गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा, जो धीरे-धीरे किडनी की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।

हां, प्रेमानंद जी महाराज को अपनी किडनियों के खराब होने के कारण सप्ताह में तीन बार डायलिसिस करवानी पड़ती है। हर डायलिसिस सत्र लगभग 4 घंटे तक चलता है, लेकिन इसके बावजूद महाराज जी अपनी दिनचर्या और आध्यात्मिक कार्यों में लगे रहते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी किडनियों का नाम “राधा” और “कृष्ण” रखा है। उनका मानना है कि भगवान के ये रूप उनके शरीर में मौजूद हैं, और यह विश्वास उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है।

यह एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें किडनी के अंदर सिस्ट (गांठें) बन जाती हैं। समय के साथ ये सिस्ट किडनी का आकार बढ़ाते हैं, जिससे किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इससे अंततः किडनी फेल होने की स्थिति पैदा होती है।

प्रेमानंद जी महाराज को उनके विचारों, सत्संग, और दिनचर्या के लिए जाना जाता है। वे प्रतिदिन सुबह 2 बजे वृंदावन की परिक्रमा करते हैं और साढ़े चार बजे से भजन-सत्संग का आयोजन करते हैं। उनके सत्संग में हजारों भक्त शामिल होते हैं, और वे समाज में आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने के लिए प्रेरित करते हैं।

र्तमान में, ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं है। हालांकि, डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसी प्रक्रियाएं बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं। प्रेमानंद जी महाराज नियमित डायलिसिस करवाते हैं और अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं।

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