श्री राधा बाबा जी, जिनका असली नाम श्री चक्रधर मिश्र था, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के एक महान संत थे। उनकी जीवन यात्रा न केवल भक्ति और साधना की प्रेरणा देती है, बल्कि समाज सेवा और त्याग का भी आदर्श प्रस्तुत करती है। राधा बाबा जी का जन्म 16 जनवरी 1913 को बिहार के गया जिले के फखरपुर गांव में हुआ था। वे बचपन से ही एक होशियार और बहु-प्रतिभाशाली छात्र थे, लेकिन जीवन के एक मोड़ पर उन्होंने भक्ति मार्ग को अपनाया और अपना जीवन श्री राधा-माधव की सेवा में समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
श्री राधा बाबा जी के जीवन की शुरुआत एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई। 1928 में, गांधी जी के आह्वान पर, इन्होंने गया के सरकारी विद्यालय में ब्रिटिश ध्वज (यूनियन जैक) उतारकर तिरंगा फहराया था। इस कारण उन्हें छह माह के लिए कारावास में डाल दिया गया। जेल में रहते हुए भी, इन्होंने अपने साथियों को रामायण और महाभारत की कथाएँ सुनाकर देशभक्ति की भावना जागृत की। यह उनका एक आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण था जो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम और समाज सेवा में एक साथ भाग लेने के लिए प्रेरित करता था।
संन्यास की ओर यात्रा
जेल में अपनी कठिनाइयों और दिव्य अनुभवों के बाद, राधा बाबा जी ने 1936 में शरद पूर्णिमा के दिन संन्यास लेने का निर्णय लिया। वे कोलकाता गए, जहाँ उनकी मुलाकात स्वामी रामसुखदास जी और सेठ जयदयाल गोयन्दका जी से हुई। इन महान आत्माओं की प्रेरणा से, राधा बाबा जी ने गीता पर टीका लिखना शुरू किया और गोरखपुर स्थित गीता वाटिका में अपना स्थान बनाया।
श्री राधा बाबा जी का भक्ति मार्ग
श्री राधा बाबा जी का जीवन पूरी तरह से श्री राधा-माधव के प्रति अनन्य भक्ति से ओतप्रोत था। उनका मन हमेशा वृन्दावन की लीला में रमा रहता था। उन्होंने राधाष्टमी महोत्सव की शुरुआत की और श्री कृष्ण लीला, जय-जय प्रियतम, और प्रेम सत्संग सुधा माला जैसे भक्ति साहित्य की रचना की। उनका जीवन साधना में पूर्ण रूप से समर्पित था। वे प्रतिदिन तीन लाख नाम जप करते थे और हमेशा भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में डूबे रहते थे।
समाज सेवा और प्रेरणा
राधा बाबा जी का ध्यान सिर्फ आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज सेवा के माध्यम से भी मानवता की सेवा की। उनकी प्रेरणा से हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल स्थापित हुआ, जहाँ हर दिन सैकड़ों रोगी उपचार प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने भक्ति साहित्य का निर्माण, अनाथों को आश्रय, गोसंरक्षण जैसे कई महत्वपूर्ण सेवा कार्य किए।

राधा बाबा जी की महा समाधि
13 अक्टूबर 1992 को, श्री राधा बाबा जी ने गोरखपुर स्थित गीता वाटिका में महा समाधि ली। उनका जीवन हम सभी के लिए भक्ति, तपस्या, और समाज सेवा का अद्भुत उदाहरण बन गया है। उनके जीवन का उद्देश्य केवल ईश्वर की भक्ति और साधना नहीं था, बल्कि समाज के कल्याण की ओर भी उनका गहरा ध्यान था।
निष्कर्ष
श्री राधा बाबा जी की जीवनी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची आध्यात्मिकता धन, प्रसिद्धि और दिखावे से परे होती है। उनकी साधना, त्याग और भक्ति का मार्ग हर भक्त के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वे जीवन भर श्री राधा और श्री कृष्ण के चरणों में रमण करते रहे और समाज की सेवा करते हुए एक अद्वितीय संत के रूप में हमारे दिलों में बसे हुए हैं।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि साधना और समर्पण के माध्यम से हम अपने जीवन को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जा सकते हैं।
Frequently Asked Questions (FAQs)
1. श्री राधा बाबा जी का असली नाम क्या था?
श्री राधा बाबा जी का असली नाम श्री चक्रधर मिश्र था। उनका जन्म बिहार के गया जिले के फखरपुर गांव में हुआ था।
2. श्री राधा बाबा जी की उम्र कितनी थी?
श्री राधा बाबा जी का जन्म 16 जनवरी 1913 को हुआ था। उन्होंने 13 अक्टूबर 1992 को महा समाधि ली। उनका जीवन 79 वर्षों का था।
3. भाई जी (हनुमान प्रसाद पोद्दार जी) कौन थे?
भाई जी (हनुमान प्रसाद पोद्दार जी) गीता प्रेस के संस्थापक और महान संत थे, जिन्होंने श्री राधा बाबा जी को गीता पर टीका लिखने के लिए प्रेरित किया। भाई जी की उपदेशों और परामर्शों ने राधा बाबा जी के जीवन को एक नई दिशा दी।
4. हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल क्या है?
हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल गोरखपुर में स्थित एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान है, जिसे राधा बाबा जी की प्रेरणा से स्थापित किया गया। यहां पर कैंसर के रोगियों को अत्याधुनिक चिकित्सा सेवाएं और उपचार प्रदान किए जाते हैं。
5. राधा बाबा जी ने समाज सेवा में क्या योगदान दिया?
राधा बाबा जी ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अनाथों को आश्रय, भक्ति साहित्य का निर्माण, गोसंरक्षण, और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कीं। उनके मार्गदर्शन में कई सामाजिक कार्यों की शुरुआत हुई।