संत सियाराम बाबा का निधन: एक पैर पर 12 साल तपस्या करने वाले हनुमान जी के परम भक्त
निमाड़ क्षेत्र के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का बुधवार सुबह निधन हो गया। उनका देह त्याग मोक्षदा एकादशी के पवित्र दिन हुआ, जिससे पूरे खरगोन और निमाड़ में शोक की लहर दौड़ गई। बाबा का निधन उनके भक्तों के लिए गहरी दुखदाई घटना है, जो उन्हें एक परम संत और हनुमान जी के भक्त के रूप में पूजते थे।

संत सियाराम बाबा का जीवन सादगी, तपस्या और भक्ति का आदर्श था। वह भगवान राम और हनुमान जी के अत्यधिक भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय नर्मदा तट स्थित भट्टयांन आश्रम में बिताया, जहां वह दिन-रात रामायण का पाठ करते थे और अपने भक्तों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते थे।
बाबा का जन्म गुजरात के भावनगर में हुआ था, और 17 साल की आयु में उन्होंने गृहस्थ जीवन छोड़कर आध्यात्मिक यात्रा शुरू की। भट्टयांन आने से पहले उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की, जिसमें उन्होंने एक पेड़ के नीचे कठोर साधना की थी। कहा जाता है कि बाबा ने 12 साल तक एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी, जो उनकी अडिग भक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतीक था।
कुछ दिनों से संत सियाराम बाबा की तबियत खराब चल रही थी। 29 नवंबर से वह निमोनिया से ग्रस्त थे, और इलाज के लिए उन्हें सनावद के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चार दिन के इलाज के बाद, बाबा ने अपनी इच्छा व्यक्त की कि वह अस्पताल से वापस अपने आश्रम लौटना चाहते हैं। 3 दिसंबर को उन्हें कसरावद स्थित अपने आश्रम लाया गया, जहां उनका उपचार जारी रखा गया।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर उनकी देखभाल के लिए आश्रम में अस्पताल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थीं। हालांकि, उनकी उम्र और गंभीर बीमारी के कारण वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो सके और केवल तरल आहार ही ले पा रहे थे।
संत सियाराम बाबा का निधन बुधवार सुबह 6:10 बजे हुआ। उनके निधन की खबर फैलते ही उनके भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई। बाबा के अंतिम दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की संभावना जताई है। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे नर्मदा नदी के तट पर तेली भट्टयांन में किया जाएगा।
संत सियाराम बाबा के जीवन का एक और महत्वपूर्ण पहलू था उनका दान और सेवा कार्य। वह हमेशा अपने भक्तों से केवल 10 रुपये का दान स्वीकार करते थे, जिसे नर्मदा घाटों के विकास और आसपास के धार्मिक स्थलों की सेवा में खर्च किया जाता था। उनके द्वारा किए गए दान में न केवल आश्रम के आसपास के क्षेत्र का सुधार हुआ, बल्कि उन्होंने कई मंदिरों में भी बड़ी राशि दान की थी।
बाबा का जीवन एक सादगीपूर्ण आदर्श था। उन्होंने अपने भक्तों से कभी कुछ नहीं लिया और हमेशा अपनी जरूरतों से अधिक किसी चीज़ का संग्रह नहीं किया। उनका विश्वास था कि साधना और सेवा से ही जीवन का सही मार्ग मिल सकता है।
संत सियाराम बाबा का उत्तराधिकारी कौन होगा, इस बारे में फिलहाल कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। उनके भक्तों को उम्मीद है कि उनके द्वारा छोड़ी गई आध्यात्मिक धरोहर और उनकी शिक्षाएं हमेशा जीवित रहेंगी और आश्रम की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे।
निष्कर्ष
संत सियाराम बाबा का निधन एक युग का समापन है, लेकिन उनकी भक्ति, तपस्या और सेवा का आदर्श हमेशा जीवित रहेगा। उन्होंने अपने जीवन में जो प्रेम, भक्ति और त्याग का संदेश दिया, वह हर किसी के दिल में गहरे अंकित रहेगा। आज उनका शारीरिक रूप भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सिखाए गए मूल्य हमेशा हमारे साथ रहेंगे।
FAQs about Sant Siyaram Baba’s Demise
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