स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, जो वर्तमान में ज्योतिष पीठ के 46वें और जगत्गुरु शंकराचार्य हैं, उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिरमठ में निवास करते हैं। उनका जन्म 15 अगस्त 1969 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ब्रह्मनपुर गांव में हुआ था। उनका जन्म नाम उमाशंकर पांडे था। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा प्राप्त की और उनके आशीर्वाद से उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का प्रारंभिक जीवन साधारण था। उन्होंने अपने गांव में कक्षा 6 तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, उनके परिवार ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए गुजरात भेजा, जहां उन्होंने काशी के संत रामचैतन्य से मुलाकात की। रामचैतन्य जी के मार्गदर्शन में, उमाशंकर ने साधना और अध्ययन करना शुरू किया। बाद में, स्वामी करपात्रि जी महाराज की सेवा करते हुए, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन देव तीर्थ और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दर्शन किए, जिन्होंने उन्हें दीक्षा दी और उनका नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती रखा।
आध्यात्मिक यात्रा और शंकराचार्य बनने तक
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जीवन प्रेरणादायक है। उन्होंने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए 2008 में काशी में 112 दिनों का अनशन किया। उनका यह अभियान गंगा की पवित्रता और संरक्षण के प्रति उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। इसके बाद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निर्देशन में आध्यात्मिक कार्यों को आगे बढ़ाया और उनके निधन के बाद, उन्हें ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया।
शंकराचार्य के रूप में योगदान
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने ज्योतिष पीठ में शंकराचार्य का पदभार संभालते हुए कई महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य किए। वे गंगा और गाय की रक्षा, धार्मिक अस्मिता और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर मुखर रहे हैं। स्वामी जी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पर हो रहे मंदिरों के ध्वंस का विरोध किया और हिमालय में स्थित केदारनाथ मंदिर के संरक्षण की बात की।
राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विचार
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अक्सर अपने राजनीतिक और सामाजिक बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं। उन्होंने उद्धव ठाकरे के हिंदू समुदाय के प्रति विश्वासघात का आरोप लगाया और देवेन्द्र फडणवीस के समर्थन में बयान दिए। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली में केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति निर्माण पर सवाल उठाए और इसे हिमालय के पवित्र क्षेत्र में ही बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
निष्कर्ष
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का जीवन देश और धर्म के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है। उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और संघर्षों ने उन्हें भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण धार्मिक नेता बना दिया है। उनकी शिक्षाएं और उनके कार्य आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रकाश फैलाते हैं।
स्वामी जी के कार्यों और योगदान को न केवल धार्मिक बल्कि समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी सराहा जाता है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, जो वर्तमान में ज्योतिष पीठ के 46वें शंकराचार्य हैं, एक प्रमुख धार्मिक नेता और गुरु हैं। उनका जन्म 15 अगस्त 1969 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का असली नाम उमाशंकर पांडे था। उन्होंने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा प्राप्त की और बाद में उनका नाम बदलकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती रखा गया।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने 2008 में काशी में 112 दिनों तक अनशन किया, जिसमें उन्होंने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की मांग की थी। उनका उद्देश्य गंगा की पवित्रता और संरक्षण था।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने शंकराचार्य बनने के बाद गंगा और गाय की रक्षा, धार्मिक अस्मिता के संरक्षण, और धार्मिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पर हो रहे कार्यों का विरोध भी किया।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती अक्सर अपने राजनीतिक विचारों के कारण चर्चा में रहते हैं। उन्होंने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बयान दिए और भारतीय राजनीति में हिंदू समुदाय की भूमिका को लेकर कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।