उड़िया बाबा, जिनका जीवन साधना, भक्ति, और त्याग का प्रतीक था, भारतीय संतों के बीच एक अत्यंत सम्मानित और आदर्श व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। उनका जीवन न केवल उनके भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत था, बल्कि उन्होंने अपने द्वारा किए गए कार्यों से समाज को भी गहरी छाप छोड़ी। उड़िया बाबा की मृत्यु के समय घटनाएँ न केवल उनकी दिव्यता को दर्शाती हैं, बल्कि हमें जीवन और मृत्यु के प्रति उनके अद्वितीय दृष्टिकोण से भी अवगत कराती हैं।
अंतिम दिन: एक शांति से भरी साधना
उड़िया बाबा की मृत्यु 8 मई 1948 को, विक्रम संवत 2005 के चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुई। उस दिन वह लगभग 73 वर्ष के थे और अपनी साधना में गहरे ध्यान में बैठे थे। उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था, लेकिन उनका ध्यान और साधना किसी भी भौतिक परेशानी से अज्ञात था। वह अपने वृंदावन आश्रम में थे, जहाँ पर प्रातः कालीन प्रवचन के दौरान गीता के श्लोक की व्याख्या की जा रही थी।
स्वामी अखण्डानन्दजी ने अपनी पुस्तक ‘पावन प्रसंग’ में उल्लेख किया है कि मध्याह्न के समय एक भक्त ने भागवती कथा सुनाई, और उड़िया बाबा समाधि से बैठकर श्रवण कर रहे थे। अचानक, एक अर्धविक्षिप्त व्यक्ति, ठाकुरदास नामक व्यक्ति, आश्रम में घुसा और उसने गँड़ासे से बाबा के सिर पर तीन बार प्रहार किया। इस आक्रमण में बाबा के सिर पर गहरा घाव हो गया, और उनकी एक उंगली भी कट गई। लेकिन अचरज की बात यह थी कि बाबा ने न तो कोई चिल्लाहट की, न ही कोई पीड़ा जताई। उन्होंने शांति से केवल “प्रणव” (ॐकार) का उच्चारण किया और अपनी आंखें बंद कर लीं।
ध्यान और मृत्यु के बीच का अंतर
यह घटना सिर्फ एक शारीरिक आक्रमण नहीं थी, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक लीला का हिस्सा थी। उड़िया बाबा ने कभी भी अपने शरीर को स्थायी मानकर उसे अपनी पहचान नहीं माना। उनका जीवन पूरी तरह से आत्मा के सत्य के साथ जुड़ा हुआ था। जैसे ही उन्होंने अपनी आखिरी श्वास ली, उनके शरीर को यमुनाजी में जलसमाधि दे दिया गया, जो उनके पवित्र जीवन और दिव्य समाधि का प्रतीक बन गया।
महापुरुषों की तरह एक आत्मीय यात्रा
इस तरह की घटनाएँ इतिहास में कई महापुरुषों के साथ घटित हुई हैं। जैसे भगवान बुद्ध, श्री शंकराचार्य, महात्मा पलटू आदि पर भी आक्रमण हुए थे, वैसे ही उड़िया बाबा की मृत्यु का कारण भी एक प्रकार का रहस्य था। श्रीप्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी ने ‘श्री उड़िया बाबा के संस्मरण’ में लिखा है कि महापुरुषों की मृत्यु हमेशा एक शिक्षा देती है और यह हमें जीवन और मृत्यु के वास्तविक अर्थ से परिचित कराती है।
उड़िया बाबा का जीवन परोपकार और साधना में बीता। उनका यह मानना था कि संसार में दुःख का अंत नहीं हो सकता, क्योंकि यह संसार हमेशा कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़ा ही रहता है। उनका दर्शन था कि संसार में दुखों का समूल नाश नहीं हो सकता, लेकिन हमें अपनी साधना के माध्यम से शांति और निर्वाण प्राप्त करना चाहिए।
निष्कर्ष
उड़िया बाबा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सही साधना, भक्ति, और ध्यान के माध्यम से हम आत्मिक शांति और दिव्यता की प्राप्ति कर सकते हैं। उनकी मृत्यु भी एक गहरी आध्यात्मिक संदेश देती है, जो यह बताती है कि हमारे जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल भौतिक सुखों का संचय नहीं है, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति है। उनका जीवन और मृत्यु, दोनों ही हमें अपने जीवन को अधिक शुद्ध, शांत और दिव्य बनाने की प्रेरणा देते हैं।
1. उड़िया बाबा की मृत्यु का कारण क्या था?
उड़िया बाबा की मृत्यु एक शारीरिक आक्रमण के कारण हुई थी। 8 मई 1948 को, एक मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति ने बाबा पर गँड़ासे से हमला किया। बाबा के सिर पर तीन प्रहार किए गए, लेकिन उन्होंने शांति बनाए रखी और किसी प्रकार का कष्ट नहीं व्यक्त किया। इस घटना के बाद बाबा ने अपनी आखिरी श्वास ली और उनका शरीर यमुनाजी में जलसमाधि के लिए दिया गया।
2. उड़िया बाबा की मृत्यु कब हुई थी?
उड़िया बाबा की मृत्यु 8 मई 1948 को हुई, जो विक्रम संवत 2005 के चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिन था।
3. उड़िया बाबा के अंतिम क्षण कैसे थे?
उड़िया बाबा के अंतिम क्षण शांति से भरे हुए थे। वह अपनी साधना में गहरे ध्यान में बैठे हुए थे। एक भक्त द्वारा भागवती कथा सुनाए जाने के बाद उन्होंने अपने ध्यान में खोकर आक्रमण की स्थिति को शांति से सहन किया और “ॐ” का उच्चारण करते हुए अपनी आखिरी श्वास ली।
4. उड़िया बाबा का जीवन दर्शन क्या था?
उड़िया बाबा का जीवन दर्शन परोपकार, साधना, और भक्ति में निहित था। उनका मानना था कि संसार में दुःख का समूल नाश नहीं हो सकता, क्योंकि यह संसार हमेशा कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़ा ही रहता है। उन्होंने बताया कि साधना के माध्यम से हम शांति और निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं।
5. उड़िया बाबा के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उड़िया बाबा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सही साधना, भक्ति, और ध्यान के माध्यम से हम आत्मिक शांति, दिव्यता, और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। उनका जीवन और मृत्यु हमें अपने जीवन को अधिक शुद्ध, शांत, और दिव्य बनाने की प्रेरणा देते हैं।