Swami Premanand Ji Maharaj ke anusar Prarabdha Karma aur Naveen Karma ki Pehchaan

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स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार प्रारब्ध कर्म और नवीन कर्म की पहचान

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के दृष्टिकोण से प्रारब्ध कर्म और नवीन कर्म की पहचान और उनके अंतर को समझना जीवन में महत्वपूर्ण है। महाराज जी ने इस विषय पर जो विचार दिए हैं, वे बहुत गहरे और जीवन के लिए उपयोगी हैं। यहां उनके विचारों का सार प्रस्तुत किया गया है:

प्रारब्ध और नवीन कर्म का अंतर:(Prarabdh aur Naveen Karma ka Antar)

1. प्रारब्ध कर्म:

  • प्रारब्ध कर्म वे घटनाएँ हैं जो हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के परिणामस्वरूप इस जन्म में घटित होती हैं। ये घटनाएँ हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं और हम इन्हें बदलने में असमर्थ होते हैं।
  • उदाहरण: अगर आप कहीं चलते हुए अनजाने में किसी जीव को नुकसान पहुंचाते हैं, तो यह प्रारब्ध कर्म है। आपकी कोई इच्छा या संकल्प नहीं था कि आप उसे नुकसान पहुंचाएँ, लेकिन यह घटना पूर्व निर्धारित होती है, क्योंकि यह आपकी पूर्वजन्म की स्थिति से जुड़ी होती है।
  • प्रारब्ध के तहत जो घटनाएँ होती हैं, वे अनचाही होती हैं। हम चाहकर भी उन्हें नहीं बदल सकते। जैसे कोई दुर्घटना या असमर्थता जो हमारे जीवन में घटित हो, वह हमारे प्रारब्ध के फलस्वरूप होती है।

2. नवीन कर्म:

  • नवीन कर्म वे कर्म हैं जो हमारी इच्छाओं, वासना और संकल्प से प्रेरित होते हैं। जब हम किसी कार्य को अपनी इच्छा, राग-द्वेष, या विचारों से करते हैं, तो वह नवीन कर्म बनता है।
  • उदाहरण: यदि हम किसी से झगड़ा करते हैं या किसी को नुकसान पहुँचाते हैं, तो यह हमारा नवीन कर्म है, क्योंकि यह हमारी इच्छा और संकल्प से उत्पन्न हुआ है।
  • नवीन कर्म का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह हमारे वर्तमान जीवन और हमारे विचारों, भावनाओं, इच्छाओं से जुड़ा हुआ होता है।

प्रारब्ध और नवीन कर्म की पहचान:

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को साझा किया है, जिनसे हम प्रारब्ध और नवीन कर्म के बीच का अंतर पहचान सकते हैं:

  • अनचाही घटनाएँ: यदि कोई घटना बिना हमारी इच्छा या संकल्प के घटित होती है, जैसे हम सड़क पर चल रहे होते हैं और अचानक किसी जीव या व्यक्ति से टकरा जाते हैं, तो यह प्रारब्ध कर्म का फल हो सकता है। हम चाहकर भी उसे बदल नहीं सकते थे।
  • वासना से प्रेरित कर्म: जब हम किसी कार्य को इच्छा या वासना से करते हैं, तो वह नवीन कर्म होता है। उदाहरण के लिए, अगर हम गुस्से में आकर किसी को चोट पहुँचाते हैं, तो वह हमारा नवीन कर्म है, जो हमारे राग-द्वेष या विचारों से उत्पन्न हुआ।

धैर्य और विवेक का महत्व:

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि हमें विवेक का उपयोग करना चाहिए, खासकर तब जब हम प्रारब्ध कर्म का सामना कर रहे होते हैं। विपरीत परिस्थितियों का सामना करते समय हमें मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए।

  • विवेक का प्रयोग: अगर हमें कोई कठिनाई या विपत्ति आती है, तो हमें इसे एक अस्थायी स्थिति के रूप में देखना चाहिए। हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि कल अच्छा समय आएगा।
  • धैर्य बनाए रखना: स्वामी जी ने कहा कि अगर हमारे पास धैर्य, सत्संग, और नाम का बल है, तो हम किसी भी मुश्किल समय को पार कर सकते हैं।

नकारात्मक विचारों से बचना:

स्वामी जी ने यह भी बताया कि जब कोई प्रारब्ध कर्म हमें दुख देता है, तो हमें नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए। कई बार लोग दुखों का सामना करते हुए हताश हो जाते हैं, लेकिन यदि हम सत्संग, शास्त्र, नाम जाप और स्वाध्याय में समय बिताते हैं, तो हम मानसिक रूप से मजबूत रह सकते हैं।

स्वामी प्रेमानंद जी ने कहा कि नाम जाप और सत्संग के द्वारा हम अपने जीवन की कठिनाइयों को सहन कर सकते हैं और एक नई दिशा में बढ़ सकते हैं। विपरीत परिस्थितियों में, अगर हमारे पास सकारात्मक सोच और आध्यात्मिक शक्ति है, तो हम अपनी परिस्थिति को बदलने की क्षमता रखते हैं।

नकारात्मक और आत्मघाती विचारों से बचाव:

स्वामी जी ने चेतावनी दी कि नकारात्मक विचार जैसे आत्महत्या के विचार या मानसिक अवसाद से बचने के लिए हमें आत्मज्ञान, सत्संग और आध्यात्मिक साधना की जरूरत होती है। जब हम जीवन में ऐसे विचारों से घिर जाते हैं, तो हमें सत्संग और नाम जाप से अपने मन को शांति और संतुलन प्रदान करना चाहिए।

निष्कर्ष:

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, प्रारब्ध कर्म और नवीन कर्म दोनों का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रारब्ध वह है जो हम बदल नहीं सकते, जबकि नवीन कर्म वह है जो हमारी इच्छाओं और संकल्पों से उत्पन्न होता है। हमें अपने जीवन में विवेक और धैर्य का पालन करते हुए इन दोनों के बीच अंतर समझने की आवश्यकता है। सत्संग, नाम जाप, और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं और किसी भी विपरीत परिस्थिति से उबर सकते हैं।

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